

देहरादून
धीरज सजवाण
उत्तराखंड 38वें राष्ट्रीय खेलों में आमिर खान की दंगल फिल्म की कहानी दोहराई गई है. यूपी के बागपत निवासी हैमर थ्रोअर सुशील कुमार यादव बड़ा खिलाड़ी बनकर खेलों की दुनिया में नाम कमाना चाहते थे. लेकिन उन्हें मजबूरी में 18 साल की उम्र में अपना खेल छोड़ना पड़ा. उनके मन में ये टीस दबी रही. जब उनकी बेटी हुई तो उन्होंने उसे हैमर थ्रो खिलाड़ी बनाने की ठानी. सोमवार को सुशील की बेटी अनुष्का यादव ने 38वें नेशनल गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर पिता का सपना पूरा किया.
नेशनल गेम्स में दोहराई गई फिल्म दंगल की कहानी: सोमवार को उत्तराखंड में चल रहे 38वें राष्ट्रीय खेलों में देहरादून महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज के एथलेटिक्स ग्राउंड में आयोजित हैमर थ्रो प्रतियोगिता में उत्तर प्रदेश के बागपत की अनुष्का यादव ने गोल्ड मेडल जीता. गोल्ड मेडल जीतने के बाद ईटीवी भारत ने अनुष्का से बात की. अनुष्का ने बताया कि इस गोल्ड मेडल का पूरा श्रेय उनके पिता सुशील कुमार यादव को जाता है. पिता सुशील इस गोल्ड मेडल का सपना अपने मन में कई सालों से लिए बैठे थे.

अनुष्का ने बताया कि-
मेरे पिता को पारिवारिक मजबूरी के चलते अपना खेल 18 साल की उम्र में ही छोड़ना पड़ा था. उनके इस सपने को आज मैंने पूरा किया है. मेरी इस सफलता से पिता बेहद खुश हैं. अनुष्का ने बताया कि उनके पिता अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से कतराते हैं. -अनुष्का यादव, हैमर थ्रो की गोल्ड मेडलिस्ट-
ईटीवी भारत संवाददाता ने अनुष्का के पिता सुशील कुमार यादव से बातचीत की. उनसे पूछा कि आखिर वह कौन सी टीस थी जो उनके मन में आज तक दबी आ रही थी. अनुष्का यादव के पिता सुशील कुमार यादव ने हमें बताया कि-
मैं एक हैमर थ्रो खिलाड़ी रहा हूं. मेरा सपना बड़ा हैमर थ्रोअर बनना था. पारिवारिक मजबूरी के चलते 18 साल की उम्र में मेरी शादी करवा दी गई थी. इसके बाद मुझे खेल छोड़ना पड़ा था. तब से लेकर मेरे मन में सपना था कि मेरा एक बेटा होगा और उसे मैं नेशनल चैंपियन बनाऊंगा.
-सुशील कुमार यादव, गोल्ड मेडलिस्ट अनुष्का के पिता-
सुशील ने बेटी को बनाया हैमर थ्रोअर: लेकिन दंगल फिल्म के महावीर सिंह फोगाट की तरह उनके घर में भी लगातार बेटियां हुईं. फिर सुशील कुमार यादव ने भी ठीक वैसा ही फैसला लिया जैसा दंगल फिल्म के महावीर सिंह फोगाट ने लिया था. फर्क सिर्फ इतना है कि दंगल गर्ल कुश्ती में नाम कमाती हैं. सुशील की बेटी ने हैमर थ्रो में गोल्डन सक्सेस पाई है. सुशील कुमार ने बेटे का और इंतजार न करते हुए अपनी तीसरी बेटी अनुष्का यादव की खेल के लिए तैयारी करवाई. सोमवार को जब अनुष्का के गले में गोल्ड मेडल था, तो सुशील कुमार यादव कि वह टीस भी खत्म हुई. उन्होंने जो सपना बेटे को लेकर देखा था, वह उनकी बेटी अनुष्का ने पूरा कर दिया.
बागपत की लड़कियों ने दिखाया दम: सोमवार को हुई हैमर थ्रो प्रतियोगिता में केवल गोल्ड मेडलिस्ट अनुष्का यादव की ही नहीं बल्कि इसके साथ-साथ सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल लाने वाली तान्या और नंदिनी की कहानी भी रोचक है. दरअसल यह तीनों लड़कियां उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आती हैं. तीनों खिलाड़ियों ने नेशनल गेम्स के लिए एक ही ग्राउंड पर मेहनत की थी.
बागपत की 3 खिलाड़ियों ने किया सारे पदकों पर कब्जा: बागपत की अनुष्का यादव, तान्या चौधरी और नंदिनी तीनों ने हेमर थ्रो में क्रमश: स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीता है. रोचक बात यह है कि तीनों ही बेटियां अपने पिता के सहारे यहां तक पहुंची हैं. तीनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी एक समान है. तीनों गरीबी, संघर्ष, तंगहाली से निकलकर राष्ट्रीय खेलों के फलक पर चमकी हैं.
सिल्वर मेडलिस्ट तान्या की कहानी भी दंगल जैसी: हैमर थ्रो में रजत पदक जीतने वाली तान्या चौधरी भी आज अपने पिता के संघर्षों की बदौलत यहां तक पहुंच पाई हैं. तान्या ने बताया कि-
मेरे पिता मुझे तीन साल तक अभ्यास कराने के लिए दूसरे गांव लेकर जाते थे. पिता खेती किसानी करते हैं. मैंने अनुष्का और नंदिनी के साथ ही प्रेक्टिस की है. भविष्य में मैं देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना चाहती हूं.
-तान्या चौधरी, सिल्वर मेडलिस्ट-
तान्या का नेशनल गेम्स में पहला मेडल: तान्या का भी यह राष्ट्रीय खेलों का पहला मेडल है. उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय पिता और कोच को दिया है. उन्होंने बताया कि आगे बढ़ाने में कोच सचिन यादव ने भी पूरा सहयोग किया.


