सरकार गठन के मामले में भाजपा और कांग्रेस नहीं रख पाएंगे मुस्लिमों से परहेज

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रिपोर्टर – जसवीर सिंह

स्थान – लक्सर

विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस  ने मुस्लिमों से नजदीकी दिखाने से परहेज रखा हो, और भाजपा ने भी भले ही जुम्मे की नमाज और मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरा हो, लेकिन सरकार गठन के मामले में दोनों दल मुस्लिमों से परहेज नहीं रख पाएंगे। अगर भाजपा के नेतृत्व में अल्पमत सरकार बनने की नौबत आई तो कम से कम एक, अगर कांग्रेस की बहुमत सरकार बनने की नौबत आई तो दो और अल्पमत सरकार बनने की नौबत आई तो तीन मुस्लिम मंत्री संभावित माने जा रहे हैं। अगली कैबिनेट मुस्लिम मंत्री से तभी बरी रह सकती है जब भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार बने या फिर लक्सर में हाजी शहजाद, मंगलौर में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन और कलियर में हाजी फुरकान अहमद चुनाव जीतकर न आएं। ऐसा नहीं होने जा रहा है। शानदार राजनीतिक मैनेजमेंट के दम पर कलियर में चुनाव लड़े हाजी फुरकान अहमद और लक्सर में हाजी शहजाद जीतकर वापिस आ रहे हैं। यही स्थिति मंगलौर में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की है। वे थोड़ा मुश्किलों में हैं लेकिन चुनाव उनकी पकड़ से बाहर नहीं बताया जा रहा है।

मसलन, लक्सर की बात करें तो यहां भाजपा के सिटिंग एम एल ए और प्रत्याशी संजय गुप्ता खुद ही अपनी हार संभावित मानकर चल रहे हैं। यदि वे हारते हैं तो यहां हाजी शहजाद का जीत जाना निश्चित होगा। वे जीते और संजय गुप्ता के आरोप सच साबित हुए तो यह उनके शानदार मैनेजमेंट का अपने आपमें सबूत होगा। ऐसे ही सबूत और भी दिए जा सकते हैं, लेकिन वह अलग मसला होगा। अहम यह है कि हाजी शहजाद जीते तो तीसरी बार विधायक बनेंगे और इस बात की उम्मीद करेंगे कि भाजपा और कांग्रेस में किसी को भी पूर्ण बहुमत न मिले। ऐसे में उनका महत्व बढ़ेगा और उनके कैबिनेट में जाने की संभावना बनेगी। चूंकि हाजी शहजाद बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े हैं इसलिए उन्हें इस बात से बहुत अधिक अंतर नहीं पड़ता कि सूबे में सरकार भाजपा की ही बनती है या फिर कांग्रेस की। उनके लिए आदर्श स्थिति यह होगी कि किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिले।

दूसरी ओर मंगलौर में क़ाज़ी निजामुद्दीन हैं जो पांचवीं बार विधानसभा चुनाव में उतरे हैं। वे तीन बार विधायक रह चुके हैं और इस बार अगर जीतते हैं तो चौथी बार विधायक बनेंगे। वे कांग्रेस की राजनीति करते हैं और अगर 2012 में चुनाव न हार गए होते तो तब कांग्रेस के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार में तभी मंत्री बनते। लेकिन अभी तक उनके पॉलिटिकल कैरियर में जो एक हार लिखी गई है वह 2012 की ही है। उन्होंने इन सारे हालात को समझा है और 2017 के बाद बहुत संभलकर राजनीति की है। यही कारण है कि वे आज राहुल गांधी की व्यक्तिगत टीम में शामिल हैं। इतना तय है कि राज्य में अगर कांग्रेस की पूर्ण बहुमत या कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनती है और क़ाज़ी निजामुद्दीन विधानसभा चुनाव जीतकर आते हैं तो उनके बगैर कैबिनेट का गठन नहीं हो पाएगा।

तीसरा नाम कलियर सीट का लिया जा रहा है। यहां कांग्रेस के हाजी फुरकान अहमद हैट्रिक के लिए मैदान में थे और माना जा रहा है कि वे चुनाव जीतकर आ रहे हैं। वे हरीश रावत की टीम का हिस्सा हैं और उनके समर्थकों ने उन्हें भावी कैबिनेट मंत्री के रूप में ही चुनाव लड़ाया है। हाजी फुरकान अहमद कांग्रेस के टिकट पर चार चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें दो बार वे जीते हैं। चौथे का नतीजा अभी सामने आना बाकी है। 2012 में जब राज्य में कांग्रेस गठबंधन सरकार बनी थी तब वे पहली बार विधायक बने थे, इसलिए उन्हें अनुभवहीन करार दिया गया था। लेकिन 2022 में उनके विषय में यह नहीं कहा जा सकेगा। उन्हें कैबिनेट में शामिल करने की कांग्रेस की नैतिक बाध्यता होगी।

सवाल यह है कि इन तीनों मुस्लिमों की एक दूसरे के विषय में क्या सोच, क्या योजना होगी? जाहिर है कि लड़ाई तो ये तीनों ही अपनी अपनी लड़ेंगे और इतना भी तय है कि भाजपा हो या कांग्रेस, तीनों में से किसी को भी आसानी से तो कैबिनेट नहीं दे देंगी। संघर्ष तो खूब होगा। तब वे सब तथ्य उभरकर सामने आएंगे जिनपर विधानसभा चुनाव के दौरान खामोशी रही।