“ऑपरेशन सिंदूर” के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में बंकर निर्माण की मांग तेज, उत्तरकाशी में सुरंग को बंकर में बदलने का प्रस्ताव

“ऑपरेशन सिंदूर” के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में बंकर निर्माण की मांग तेज, उत्तरकाशी में सुरंग को बंकर में बदलने का प्रस्ताव

रिपोर्ट- दीपक नौटियाल
स्थान – उत्तरकाशी

हालिया “ऑपरेशन सिंदूर” में भारत द्वारा पाकिस्तान को दी गई जवाबी सैन्य कार्रवाई ने देश की रक्षा तैयारियों और वायुसेना की निर्णायक भूमिका को उजागर कर दिया। इसके बाद अब सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक सुरक्षा को लेकर गंभीर मंथन शुरू हो गया है। उत्तरकाशी जिले की सीमांत तहसीलों में स्थानीय लोग भूमिगत बंकर बनाने की मांग करने लगे हैं।

खासकर भारत-चीन सीमा से लगे क्षेत्रों में यह मांग तेज़ी से उठ रही है। विशेषज्ञों और पूर्व सैनिकों का कहना है कि ड्रोन हमलों और हवाई हमलों की आशंका को देखते हुए सिविलियनों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल जरूरी हैं। वर्तमान में भारत की सीमा पर ऐसे कोई संगठित नागरिक बंकर नहीं हैं, जहाँ युद्ध जैसे हालात में लोग सुरक्षित रूप से शरण ले सकें।

उत्तरकाशी की भटवाड़ी तहसील में बंद पड़ी लोहारीनाग-पाला जलविद्युत परियोजना की टनल को बंकर के रूप में उपयोग में लाने का सुझाव सामने आया है। यह सुरंग लगभग 60% निर्मित है और रणनीतिक दृष्टिकोण से यह न केवल चारधाम यात्रा के लिए वैकल्पिक मार्ग बन सकती है, बल्कि युद्धकालीन नागरिक सुरक्षा केंद्र के रूप में भी प्रयोग की जा सकती है।

स्थानीय विधायक और क्षेत्रीय लोग इस टनल को फिर से शुरू कराने की मांग कर रहे हैं और इसे भारत सरकार व राज्य सरकार से युद्धकालीन रणनीति का हिस्सा बनाने की अपील कर रहे हैं।

पूर्व सैनिकों का मानना है कि यदि सीमा पर बसे नागरिकों को सुरक्षित बंकरों की सुविधा दी जाती है, तो यह न सिर्फ मानव जीवन की रक्षा करेगा, बल्कि देश की सीमाएं भी आंतरिक रूप से अधिक सुदृढ़ होंगी।

विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि भविष्य में यदि भारत को एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा — जैसा कि पाकिस्तान और चीन से एक साथ खतरा — तो सामरिक और नागरिक सुरक्षा दोनों की तैयारी अभी से करना जरूरी होगा।

सीमावर्ती इलाकों के लोग भी यही सवाल पूछ रहे हैं: “अगर अगला युद्ध हमारे घर के दरवाज़े पर हुआ, तो हम कहाँ छिपेंगे?” इसका जवाब मजबूत भूमिगत बंकर हो सकते हैं — जिनकी मांग अब केवल सैन्य नीति तक सीमित नहीं, बल्कि जन आवाज़ बनती जा रही है।