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रिपोर्टर- समीक्षा रावत
स्थान- देहरादून
बेरोजगारी क्या है? इसका कारण क्या है? और आखिर यह भारत में दिन-ब-दिन बढ़ती ही क्यों जा रही है? यह सवाल अक्सर हर उस युवा के मन में पनपते रहते हैं जो काम तो करना चाहता है चाहे उस काम की मजदूरी, उसकी दैनिक जरूरतों को भी पूरा ना कर सके जबकि वह उस काम के लिए या अन्य किसी भी काम के लिए पूर्ण रूप से सक्षम हो और फिर भी उसे रोजगार ना मिले तो समाज में वह बेरोजगारी की श्रेणी में आता है। हम अपने आस-पास रोज ऐसे लोगों को देखते हैं जो पढ़ा- लिखा होने के बावजूद भी घर पर ही पड़ा रहता है। घरवाले, पड़ोस के लोग,उसके दोस्त उसे निट्ठला,निकम्मा, कामचोर जैसे शब्दों का उपयोग करके उसका मज़ाक बनाते हैं लेकिन उसके मन की व्यथा, परेशानी सिर्फ उसे ही पता होती है। ज़ब वह रोजगार की तलाश में दर्र-दर्र भटकता तो है परंतु खाली हाथ वापस आ जाता है। आज के समय में हर उस युवा के मन में यही सवाल है जो शिक्षित है, काम के लिए भी सक्षम है तो सरकार उसके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध क्यों नहीं कराती? उसकी इतनी पढ़ाई का क्या जो उसने सिर्फ अच्छी नौकरी और अच्छी कमाई के लिए की थी।

पढ़े-लिखें युवाओं के साथ-साथ कई ऐसे लोग भी हैं जो किताबी ज्ञान तो नहीं जानता परन्तु काम का उसे पूरा अनुभव है। वह भी बेरोजगार ही बैठा है क्योंकि नौकरियां तो है नहीं, तो वह कर भी क्या सकता है। भारत में बेरोजगारी की बात करें तो वर्ष 2014 से अब तक स्तिथि बहुत खराब हो गयी है। ऐसा इसलिए क्योंकि जितनी भी सरकारी नौकरियां रहती है उन्हें लम्बे समय तक स्थगित करा जाता है, कई-कई सालों में सरकारी भर्तियां निकलती है लेकिन भर्ती पूरा करने में समय लगाया जाता है। अब प्राइवेट सेक्टर भी पूरी क्षमता के साथ नौकरी पैदा करने में असमर्थ है। भारत में संगठित क्षेत्र के पास उपलब्ध कुल रोजगार 6-7% ही है बाकी का 93-94% हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है। भारत में बेरोजगारी दर चरम सीमा पर है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन को बेरोजगार वर्ग के लोगों ने “बेरोजगार दिवस” के रूप में मनाया। जिसमें कई छात्र-छात्राएं और अध्यापक भी शामिल थे। ट्विटर पर करीब 60 लाख से अधिक बार उस दिन “बेरोजगार दिवस” “मोदी रोजगार दो” ट्रेंड कराया गया।

यह तो वो कारण है जो हम सभी को आमतौर पर पता ही होते हैं और इसके लिए सरकार को दोष देते रहते हैं। जैसे सिक्के के दो पहलू होते है वैसे ही हर तरह से सरकार को दोष देना भी उचित नहीं है। शिक्षित और अनुभवी व्यक्ति तो रोजगार मांग ही रहा है पर क्या वह व्यक्ति भी रोजगार के लिए योग्य है जिसमें कोई हुनर है ही नहीं। है तो बस नाम की डिग्री या उस डिग्री को पाने के लिए घरवालों का पैसा। क्या उसे रोजगार मिल सकता है? दुनिया की नजरों में तो वह अच्छा-खासा शिक्षित व्यक्ति है परन्तु ज्ञान कुछ भी नहीं। लेकिन मांग है उसकी सरकारी नौकरी की। क्या सरकार उसे नौकरी देगी जबकि वह उसके लायक है ही नहीं। हम मान सकते हैं कि सरकार भी कोई दूध की धुली नहीं है। सरकारी कर्मचारियों को तो भ्रष्टाचार के लिए सब जानते है। वहां तो पैसा होगा तभी नौकरी मिलेगी। इसीलिए किसी भी एक पक्ष को सही या गलत ठहराना ठीक नहीं है।

आगे अगर हम बेरोजगारी के मुख्य कारणों को देखें तो भारत में जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ना, शिक्षा व्यवस्था में कमी, लघु और कुटीर उद्द्योगों का कम होना भी एक बड़ा कारण है क्योंकि आज के समय का पढ़ा-लिखा व्यक्ति छोटे काम को अपनी शान के खिलाफ समझता है। स्वरोजगार में कमी, क़ृषि जैसे कामों से दुरी बनाना, अपर्याप्त रोजगार के साधन जैसे कई कारण बेरोजगारी के बड़े मुद्दे है।बेरोजगारी युवाओं के लोए नहीं वरन् सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती है क्योंकि यह देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में सबसे बड़ी बाधा है। अगर हमें बेरोजगारी खत्म करनी है तो हम सरकार के भरोसे नहीं बैठ सकते बल्कि हमें एक कदम खुद से आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए हमें स्वरोजगार, लघु और कुटीर उद्योगों के विकास, क़ृषि क्षेत्र को बढ़ावा, पूंजी प्रधान तकनीक के स्थान पर श्रम प्रधान तकनीक पर ध्यान देना होगा जिससे बेरोजगारी पूरी तरह से तो नहीं बल्कि कुछ हद तक या उससे ज्यादा तक खत्म हो सकता है। अतः सरकार के साथ-2 खुद पर विश्वास और थोड़ी-सी मेहनत हमें रोजगार दिला सकती है।

