
मसूरी
रिपोर्टर: सुनील सोनकर
भारत के महान शिकारी से वन्यजीव रक्षक बने जिम कॉर्बेट की आज 150वीं जयंती है। जहां नैनीताल को उनकी जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है, वहीं मसूरी से भी उनका गहरा नाता रहा है, जिसे आज बहुत कम लोग जानते हैं।


इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि जिम कॉर्बेट के माता-पिता की शादी मसूरी में हुई थी। यही नहीं, जिम ने मसूरी में एक शेरनी को पाला था,


जिससे उन्हें अत्यंत लगाव था। इतना ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू तक उस शेरनी के साथ खेल चुके थे। भारद्वाज के अनुसार, जिम की संवेदनशीलता और जानवरों के प्रति करुणा यहीं से विकसित हुई।


कॉर्बेट का बचपन नैनीताल में बीता, लेकिन उनके पिता मसूरी के लंढौर में पोस्ट मास्टर थे, और यहीं से पहाड़ों के साथ उनका रिश्ता शुरू हुआ। जिम कॉर्बेट ने जीवन में 33 से अधिक आदमखोर बाघों और तेंदुओं का शिकार किया, लेकिन समय के साथ वे शिकारी से संरक्षणवादी बन गए।


मसूरी में आज भी जिम कॉर्बेट से जुड़ी डांडी, स्टोव, और अन्य निजी वस्तुएं सहेज कर रखी गई हैं, लेकिन इन स्मृतियों के संरक्षण के लिए सरकारी मदद अब तक नहीं मिल पाई है।


इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने जिम की विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “सरकार को चाहिए कि जिम कॉर्बेट की मसूरी से जुड़ी विरासत को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में पहचान दे और इनके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए।”

कॉर्बेट की जीवन कहानी यह सिखाती है कि शिकार की राह से भी करुणा और संरक्षण की दिशा में बढ़ा जा सकता है। उनकी 150वीं जयंती पर यह याद करना जरूरी है कि प्रकृति और वन्यजीवों से प्रेम ही असली मानवता है।

