उत्तरकाशी का ऐतिहासिक आज़ाद मैदान बदहाली की कगार पर, चारों ओर पसरी गंदगी और अव्यवस्था

उत्तरकाशी का ऐतिहासिक आज़ाद मैदान बदहाली की कगार पर, चारों ओर पसरी गंदगी और अव्यवस्था

धार्मिक आयोजनों और आंदोलनों का केंद्र रहा मैदान अब दुर्दशा का शिकार, मानसून से पहले चिंता बढ़ी

उत्तरकाशी, 2 जून 2025

उत्तरकाशी जनपद का आज़ाद मैदान, जिसे रामलीला मैदान के नाम से भी जाना जाता है, अपनी ऐतिहासिक गरिमा और उपयोगिता को खोता जा रहा है। धार्मिक आयोजनों, आंदोलनों और खेल प्रतियोगिताओं का गवाह रहा यह मैदान आज गंदगी, अतिक्रमण और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो चुका है।

चारधाम यात्रा के दौरान आने वाले यात्रियों को इसी मैदान में अपने वाहन पार्क करने होते हैं, लेकिन यहां चारों ओर फैली गंदगी और कीचड़ से उन्हें भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, नगर पालिका इस मैदान से हर साल राजस्व अर्जित करती है, लेकिन मैदान की सफाई और देखरेख पर ध्यान नहीं देती।

घास बिछाने पर खर्च हुए लाखों, अब नहीं बचा नामोनिशान

कुछ वर्ष पहले नगरपालिका ने मैदान को संवारने के नाम पर लाखों रुपये खर्च कर घास बिछाई थी, मगर वह घास अब कहां गई – इसका कोई जवाब प्रशासन के पास नहीं है। वर्तमान नगरपालिका अध्यक्ष का कहना है कि उन्हें कार्यभार संभाले कुछ ही समय हुआ है और वे जल्द ही मैदान का ‘कायाकल्प’ करेंगे।

मानसून से पहले चिंता बढ़ी

क्षेत्र में मानसून आने को है और ऐसी स्थिति में जब बारिश होगी, तो मैदान में भयंकर कीचड़ हो जाएगा। इससे न केवल यात्रियों बल्कि स्थानीय निवासियों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

जहां होते थे खेल, अब पार्किंग और ठेले

वर्षों पहले यह मैदान जिले की खेल प्रतिभाओं का केंद्र हुआ करता था। कई जिलास्तरीय प्रतियोगिताएं यहीं होती थीं। लेकिन 2013 की आपदा के बाद इस मैदान का उपयोग यात्रा सीजन में पार्किंग के रूप में होने लगा। इसके बाद से मैदान की दशा लगातार बिगड़ती गई। अब रेहड़ी-ठेली वालों ने भी मैदान के चारों ओर कब्जा जमा रखा है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और मांग

कांग्रेस पार्टी का कहना है कि वे जल्द ही जिलाधिकारी से मिलकर इस मैदान को बचाने की मांग करेंगे। उनका आरोप है कि जनपद मुख्यालय में स्थित इस अहम मैदान की यह हालत है, तो जिले के अन्य क्षेत्रों की स्थिति क्या होगी, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है।


निष्कर्ष: उत्तरकाशी का आज़ाद मैदान न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह जनपद की पहचान भी है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे मैदान के संरक्षण और विकास को प्राथमिकता दें, ताकि यह फिर से अपने गौरव को प्राप्त कर सके।