
रिपोर्ट : भगवान सिंह
स्थान : पौड़ी गढ़वाल

उत्तराखंड की पहाड़ियों में गर्मियों की दस्तक के साथ ही एक बार फिर काफल की मिठास जंगलों में बिखर गई है। इस वर्ष जंगलों में आग ना लगने के चलते पौड़ी जिले सहित कई क्षेत्रों में काफल की अच्छी पैदावार देखने को मिल रही है। यह जंगली फल न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि अब ग्रामीण युवाओं के लिए स्वरोजगार का एक सशक्त साधन भी बनता जा रहा है।


वरिष्ठ पत्रकार मनोहर बिष्ट का कहना है कि काफल फल में जहां स्वाद और पौष्टिकता है, वहीं यह युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का जरिया भी दे रहा है। अप्रैल-मई के महीनों में गढ़वाल के जंगलों में भरपूर मात्रा में मिलने वाला यह फल ग्रामीण बच्चों और युवाओं द्वारा एकत्र किया जा रहा है। स्थानीय बाजारों में इसकी अच्छी खासी मांग है, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ भी हो रहा है।


पौड़ी जैसे पहाड़ी इलाकों में काफल को लेकर खास उत्साह देखा जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि सरकार इस दिशा में संगठित प्रयास करे, तो काफल को स्थानीय रोजगार का एक मजबूत माध्यम बनाया जा सकता है। इससे जहां स्थानीय युवाओं को आजीविका का साधन मिलेगा, वहीं पारंपरिक और जैविक उत्पादों को बढ़ावा भी मिलेगा।


काफल के औषधीय गुणों की भी कई चिकित्सक सराहना करते हैं। यह फल न केवल शरीर को ठंडक देता है बल्कि पाचनतंत्र के लिए भी लाभकारी माना जाता है। काफल का उल्लेख उत्तराखंड की लोककथाओं, गीतों और कहानियों में भी होता रहा है, जो इसके सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।




