
स्थान – हरिद्वार
धर्मनगरी हरिद्वार से होकर बहने वाली बाणगंगा नदी, जो अब तक अस्तित्व की जंग लड़ रही थी, उसके पुनर्जीवित होने की उम्मीद एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। महाभारत काल से जुड़ी इस नदी को लेकर सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक बड़ा कदम उठाया है और इसके संरक्षण एवं पुनर्जीवन का बीड़ा उठाया है।



बिशनपुर कुंडी गांव से निकलने वाली यह नदी, पंचलेश्वर महादेव मंदिर होते हुए शुक्रताल तक बहती है और इसे पश्चिम बहनी गंगा नदी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यह नदी पांडवों की तपस्थली से जुड़ी हुई है। पंचलेश्वर मंदिर, पंचवेली गांव में स्थित है और इसका उल्लेख महाभारत कालीन महत्व के साथ किया जाता है।

इतिहास और संकट
80 के दशक में बाढ़ की आशंका को देखते हुए बाणगंगा के किनारों पर तटबंध बनाए गए, जिससे इसकी धारा अवरुद्ध हो गई। इसके बाद यह नदी केवल बरसाती जलधारा के रूप में ही रह गई। हालांकि भूजल के माध्यम से अब भी कुछ जल प्रवाह बना रहता है।
लगभग 60 किलोमीटर लंबी इस नदी के तट पर भोगपुर, अलावलपुर, इस्माइलपुर, प्रतापपुर, झिवारहेड़ी, रायसी जैसे दर्जन भर गांव बसे हुए हैं। कभी इन गांवों में गंगा स्नान के लिए मेला लगता था और अन्य राज्यों से श्रद्धालु यहां आया करते थे।

सांसद और वैज्ञानिक जुटे प्रयास में
हरिद्वार के सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अब इस नदी को पुनर्जीवित करने के लिए आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ठोस पहल शुरू की है। हाल ही में वैज्ञानिकों की एक टीम ने स्थलीय निरीक्षण कर नदी की बहाली की संभावनाएं तलाशी हैं।
सांसद रावत ने कहा, “प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है। स्थानीय संगठनों के सहयोग से बाणगंगा की साफ-सफाई कराई जाएगी और विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार अगली कार्ययोजना तैयार की जाएगी।”

स्थानीय जनता में जागी उम्मीद
नदी के पुनर्जीवन को लेकर स्थानीय निवासियों में उत्साह देखा जा रहा है। लोगों का मानना है कि यदि यह नदी दोबारा जीवित हो जाती है तो न केवल इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व लौटेगा, बल्कि इससे आसपास के गांवों को आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ भी मिलेगा।

