
रिपोर्टर नाम-: आसिफ इक़बाल
लोकेशन-: रामनगर
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की लगातार बढ़ती संख्या वन्यजीव संरक्षण की एक उल्लेखनीय सफलता है, लेकिन इसके साथ ही यह स्थानीय ग्रामीणों के लिए मानव-बाघ संघर्ष की चिंता भी बढ़ा रही है। आए दिन बाघों के आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख करने की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल है।

इस चुनौती से निपटने और संवेदनशील इलाकों में मानव-बाघ टकराव को रोकने के लिए कॉर्बेट प्रशासन ने एक नई वैज्ञानिक पहल की शुरुआत की है। इस योजना के तहत ऐसे बाघों की पहचान की जा रही है, जो बार-बार मानव बस्तियों के आसपास दिखाई देते हैं।

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला ने जानकारी दी कि ऐसे बाघों को बिना नुकसान पहुंचाए ट्रैंकुलाइज (अवशेषित) किया जाएगा और रेडियो कॉलर पहनाकर उन्हें कोर क्षेत्र में पुनः छोड़ा जाएगा। इस प्रक्रिया का उद्देश्य है बाघों की गतिविधियों की रीयल-टाइम निगरानी करना और यह वैज्ञानिक रूप से समझना कि वे कोर क्षेत्र में सहज हो रहे हैं या फिर वापस बस्तियों की ओर लौट रहे हैं।

डॉ. बडोला ने बताया कि “इस अध्ययन से हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि बाघों के व्यवहार में किस प्रकार के बदलाव आ रहे हैं, और यदि वे बार-बार मानव क्षेत्रों में लौटते हैं तो इसके पीछे के संभावित कारणों को भी समझा जा सकेगा।”

इस परियोजना में कॉर्बेट प्रशासन के साथ WII (Wildlife Institute of India) और WWF (World Wide Fund for Nature) का भी सहयोग लिया जा रहा है। विशेषज्ञों की प्रशिक्षित टीमें इन बाघों को ट्रैक करने, ट्रैंकुलाइज करने और रेडियो कॉलर से उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए लगातार फील्ड सर्वे और तकनीकी निगरानी में जुटी हैं।

यह पहल न केवल बाघ संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि मानव जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थानीय समुदायों के साथ विश्वास बहाली की दिशा में भी एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
