
रिपोर्टर : संजय जोशी

उत्तराखंड की संस्कृति और प्रकृति का उत्सव कहे जाने वाले हरेला पर्व की पूरे राज्य में धूम देखने को मिली। श्रावण मास में मनाया जाने वाला यह पर्व शिव-पार्वती की आराधना, हरियाली की कामना और पर्यावरण संरक्षण के संकल्प के साथ पारंपरिक रीति-रिवाजों और उत्साह के बीच मनाया गया।


हरेला: हरियाली और समृद्धि का प्रतीक
हरेला पर्व उत्तराखंड की कृषि परंपरा, प्राकृतिक जुड़ाव और पारिवारिक एकता को दर्शाता है। इसे खुशहाली, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। पर्व की खास बात यह है कि नौ दिन पूर्व बोए गए पौधों (हरेले) को आज विधिवत पूजा अर्चना के बाद काटा गया और परिजनों को शिरोधारण कराया गया, जिसे शुभ माना जाता है।

शिव-पार्वती और गणेश की पूजा
परंपरा अनुसार, डिकारे के रूप में मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियाँ बनाई गईं और उन्हें प्राकृतिक रंगों से सजाया गया। घरों और मंदिरों में इन देवताओं की पूजा-अर्चना कर पकवान अर्पित किए गए। इस अवसर पर सामूहिक भोज, लोकगीत और पौधरोपण जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।


पंचेश्वर शिव मंदिर में उमड़े श्रद्धालु

पंचेश्वर शिव मंदिर के पुजारी हेम पंत ने बताया कि “मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा करने पहुंच रहे हैं। पर्व को लेकर लोगों में विशेष आस्था और उत्साह है।” पूजा के बाद श्रद्धालुओं ने वृक्षारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प भी लिया।

हरेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोकआस्था, संस्कृति और प्रकृति के साथ आत्मिक जुड़ाव का प्रतीक है — जो आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का संदेश भी देता है।

