
रिपोर्ट -दीपक नौटियाल
स्थान – उत्तरकाशी
उत्तरकाशी, भगवान काशी विश्वनाथ की पावन भूमि में हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को होने वाली 15 किलोमीटर लंबी पंचकोशी वारुणी यात्रा में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। इस यात्रा का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड में भी मिलता है और इसे अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्यदायी माना जाता है।



श्रद्धालु यात्रा की शुरुआत उत्तरकाशी के बड़ेथी से करते हैं, जहां वे पौराणिक मणिकर्णिका घाट या वरुण गंगा और गंगा भागीरथी के संगम पर स्नान कर अपनी यात्रा आरंभ करते हैं। कुछ श्रद्धालु नंगे पैर तो कुछ व्रत रखकर इस पवित्र यात्रा में शामिल होते हैं।


यात्रा के दौरान पहला पड़ाव बसूंगा गांव है, जहां श्रद्धालु बासू कंडार मंदिर में दर्शन कर आगे बढ़ते हैं। इसके बाद साल्ड गांव में जगन्नाथ एवं अष्टभुजा ज्वाला देवी मंदिर, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर महादेव एवं व्यास कुंड के दर्शन किए जाते हैं। अंत में श्रद्धालु वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर पहुंचते हैं, जहां से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।

इस आध्यात्मिक यात्रा का समापन उत्तरकाशी शहर के निकट गंगोरी अस्सी गंगा संगम स्थल पर स्थित महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ होता है। आस्था, परंपरा और प्रकृति के अनूठे संगम वाली यह यात्रा श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और पुण्य लाभ प्रदान करती है।


