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रिपोर्टर – संजय कुंवर
स्थान – डुमक, जोशीमठ
पहाड़ों में सड़क कनेक्टविटी ग्रामीण जीवन की लाईफ लाईन मानी जाती है, लेकिन अगर ग्रामीणों को दशकों से सड़क बिना हर एक काम के लिए प्रति दिन जिला मुख्यालय करीब 20किलोमीटर से अधिक की दूरी पैदल नापनी पड़े तो उनके जीवन में क्या बदलाव आएगा, सड़क के लिए संघर्ष क्या और कैसे होता है ये जोशीमठ के दूरस्थ डुमक गांव के लोगों से पूछिए, दरअसल हम बात कर रहे है चमोली जनपद के जोशीमठ प्रखण्ड में स्थित एक सुदूरवर्ती गांव डुमक की जो समूद्र तल से करीब साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर बसा अपनी बेहद खूबसूरत सांस्कृतिक धार्मिक विरासत और जैव विविधता से भरा गांव है,
लेकिन एक सड़क के लिए यहां के लोगों की एक पीढ़ी ही गुजर गई लेकिन सड़क का इंतजार खत्म नही हुआ, ये तस्वीरों में जो आप ग्रामीणों महिलाओ पुरुषों को बर्फ से भरे रास्तों में चलते दिखाई दे रहे है ये कोई शादी समारोह या धार्मिक अनुष्ठान में शरीक होने नही जा रहे है, सुबह तड़के अपने अपने घरों से निकले ये ग्रामीण PMGSY मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए एकजूट होकर जिला मुख्यालय गोपेश्वर में जन आक्रोश रैली में जा रहे है,
विकट भौगोलिक परिस्थितियों से गुजरते हुए कैसे ये लोग पैदल बर्फ में मीलों चल कर जन आंदोलन में शामिल होने गोपेश्वर पहुंच रहे है, इससे साफ जाहिर हो जाता है की आज डुमक गांव के लिए सड़क मार्ग की कितनी जरूरत है, अपनी इस एक सूत्रीय मांग को लेकर यहां के ग्रामीण 27दिसंबर से क्रमिक धरना प्रदर्शन और पद यात्रा करके अपनी मांग के लिए सरकार पर दबाव बनाए हुए है, वहीं प्रशासन भी करीब 4दौर की वार्ता ग्रामीणों के साथ कर चुका है,
लेकिन ग्रामीणों और प्रशासन के मध्य PMGSY को लेकर क्या क्या वार्ता हुई और कहां पेंच फंसा है ये तो अभी वार्ता करने वाले उच्च अधिकारियो और ग्रामीणों को ही मालूम है फिलहाल आज बड़े जोश और जज्बे के साथ डुमक गांव के लोग पैदल ही पारंपरिक पंच केदार ट्रैकिंग रूट पर बर्फ से ढके मार्गो से नारेबाजी के साथ गोपेश्वर मुख्यालय पहुंचे है देखना होगा कि आज की जन आक्रोश रैली से जिला प्रशासन pmgsy के साथ साथ ग्रामीणों के बीच क्या कोई विशेष वार्ता या समझौता हो पाएगा की नही