सीएम धामी के ‘हल चलाओ’ अंदाज़ पर सियासत गर्म, कांग्रेस ने बताया दिखावा, भाजपा ने बताया किसानों को प्रोत्साहित करने वाला कदम

सीएम धामी के ‘हल चलाओ’ अंदाज़ पर सियासत गर्म, कांग्रेस ने बताया दिखावा, भाजपा ने बताया किसानों को प्रोत्साहित करने वाला कदम

स्थान : देहरादून
रिपोर्टर : सचिन कुमार

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हाल ही में अपने गृह क्षेत्र में धान रोपाई और खेत जोतने की तस्वीरों ने प्रदेशभर में चर्चाएं बटोरी हैं। जहां भाजपा इसे किसानों के प्रति लगाव और प्रोत्साहन का प्रतीक मान रही है, वहीं विपक्षी कांग्रेस ने इसे महज “राजनीतिक स्टंट” करार देते हुए कड़ी आलोचना की है।

कांग्रेस का आरोप: किसानों की आत्महत्या पर चुप्पी, खेत में हल चलाना दिखावा

कांग्रेस ने मुख्यमंत्री धामी पर हमला बोलते हुए कहा कि “अगर मुख्यमंत्री को किसानों की वास्तव में चिंता है तो उन्हें नीतिगत फैसले लेने चाहिए, न कि फोटो खिंचवाने के लिए खेतों में हल चलाना चाहिए।”


कांग्रेस नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि “जब देशभर में किसान आत्महत्या कर रहे थे, तब मुख्यमंत्री चुप थे, यहां तक कि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में भी एक किसान ने कर्ज से तंग आकर आत्महत्या कर ली।”


उन्होंने मांग की कि सरकार को पहाड़ी कृषि उत्पादों पर समर्थन मूल्य तय करना चाहिए और किसानों की आय बढ़ाने के लिए स्थायी समाधान वाली नीतियां बनानी चाहिए।

भाजपा का पलटवार: “किसान का बेटा है धामी, खेती करना अभिनय नहीं”

भाजपा ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री धामी “किसान के बेटे हैं और अपने खेत में काम कर रहे थे, यह कोई दिखावा नहीं बल्कि मूल्यों से जुड़ी ईमानदारी है।”
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी ने तंज कसते हुए कहा, “जब कांग्रेस के युवराज दूसरों के खेतों में हल चलाते हैं तो कांग्रेस को दिक्कत नहीं होती, लेकिन जब पुष्कर सिंह धामी अपने खेत में धान रोपते हैं तो कांग्रेस को परेशानी होती है।”

उन्होंने कांग्रेस पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि “कभी कांग्रेस नेता जलेबी तलते हैं, तो कभी खुद ही फर्जी नौटंकी करते हैं और अब किसानों की भावनाओं पर भी राजनीति कर रहे हैं।”

किसानों की भावनाएं राजनीतिक बहस के केंद्र में

मुख्यमंत्री की खेत में सक्रियता के राजनीतिक मायनों पर शुरू हुई यह बहस अब किसानों के असली मुद्दों तक पहुँच गई है। दोनों ही दल इसे जनभावनाओं से जुड़ा विषय बता रहे हैं, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या यह वास्तविक परिवर्तन लाएगा या केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित रहेगा।