
नैनीताल

नैनीताल। एक समय था जब नैनीताल को पहाड़ों की रानी और सुकून की नगरी कहा जाता था। दूर-दराज़ से लोग यहां की ठंडी हवाओं, झीलों और शांति के लिए आया करते थे। लेकिन अब वही नैनीताल सैलानियों की जेब पर भारी पड़ रहा है। प्रशासन द्वारा हाल ही में लागू की गई नई एंट्री फीस ने पर्यटकों को चौंका दिया है।

अब नैनीताल में कार पार्किंग के लिए ₹500, टूरिस्ट एंट्री के लिए ₹300 और बाइक वालों से ₹100 की फीस ली जा रही है। इन दरों को लेकर आमजन में नाराजगी देखी जा रही है।
प्रशासन की दलील:
प्रशासन का कहना है कि यह कदम भीड़ नियंत्रण और स्थानीय संसाधनों के संरक्षण के लिए उठाया गया है। अधिकारियों के अनुसार, बढ़ती भीड़ से नैनीताल की सड़कों, झीलों और पर्यावरण पर दबाव बढ़ा है, और इन टैक्सों से मिलने वाली राशि से साफ-सफाई, ट्रैफिक मैनेजमेंट और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी।

जनता का सवाल:
लेकिन सवाल यह है—भीड़ कम करना है या जेब काटना?
स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने इस कदम की तीखी आलोचना की है। कुछ का कहना है, “इतना चार्ज तो मॉल की पार्किंग में भी नहीं लगता।” एक अन्य व्यक्ति ने गुस्से में कहा, “हम घूमने आए हैं या लुटने?”

मध्यमवर्गीय परिवारों पर असर
इन दरों से सबसे ज़्यादा असर मध्यमवर्गीय परिवारों पर पड़ने वाला है, जो सीमित बजट में गर्मियों की छुट्टियों का आनंद लेने नैनीताल आते हैं। कई लोगों का मानना है कि ये नए टैक्स टूरिज़्म को बढ़ावा देने के बजाय, उसे मारने का काम करेंगे।
बहस जारी है:
क्या यह वाकई एक ज़रूरी कदम है या फिर यह टूरिज्म को एक प्रीमियम अनुभव बना देने की कोशिश है, जिसमें आम आदमी की कोई जगह नहीं बची?
यह सवाल अब हर टूरिस्ट के मन में उठ रहा है।
आपका क्या मानना है?
क्या नैनीताल को भीड़ से बचाने के लिए ये टैक्स वाजिब हैं?
या फिर ये एक और तरीका है जेब ढीली करवाने का?

