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रिपोट -लक्ष्मण बिष्ट
स्थान-लोहाघाट
लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम मायावती में मंगलवार को हिंदू पंचांग अनुसार स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस की 189 जन्मतिथि को बेहद ही उत्साहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर हुए प्रबोधन कार्यक्रम में स्वामी शांतचित्तानन्द द्वारा रामकृष्ण परमहंस के जीवन पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया। स्वामी शांतचित्तानन्द ने बताया कि रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे।
उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे। साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं। स्वामी शांतचित्तानन्द ने अपने संबोधन में बताया कि रामकृष्ण परमहंस छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षा देते थे।उस समय के बुद्धिजीवियों पर उनके विचारों ने ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा था।
उनके आध्यात्मिक आंदोलन ने परोक्ष रूप से देश में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने का काम किया क्योंकि उनकी शिक्षा जातिवाद एवं धार्मिक पक्षपात को नकारती है। स्वामी शांतचित्तानन्द ने बताया रामकृष्ण परमहंस के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है ईश्वर प्राप्ति है। वह तपस्या, सत्संग और स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक साधनों पर विशेष बल देते थे। वह हमेशा वह कहा करते थे कि अहंकार आत्मज्ञान में बाधक है क्योंकि जब तक अहंकार दूर न होगा, अज्ञान का परदा कदापि न हटेगा। वह तपस्या, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदि साधनों से अहंकार दूर कर आत्म-ज्ञान प्राप्त और ब्रह्म को पहचानने की बात पर बल देते थे।उन्होंने बताया रामकृष्ण परमहंस संसार को माया के रूप में देखते थे।
वह कहा करते थे कि अविद्या माया सृजन के काले शक्तियों को दर्शाती हैं जैसे काम, लोभ ,लालच , क्रूरता , स्वार्थी कर्म आदि यह मानव को चेतना के निचले स्तर पर रखती हैं। यह शक्तियां मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधने के लिए ज़िम्मेदार हैं। वही विद्या माया सृजन की अच्छी शक्तियों के लिए ज़िम्मेदार हैं जैसे निःस्वार्थ कर्म ,आध्यात्मिक गुण, ऊँचे आदर्श, दया, पवित्रता, प्रेम और भक्ति यह मनुष्य को चेतन के ऊँचे स्तर पर ले जाती हैं। स्वामी शांतचित्तानन्द ने उपस्थित लोगों से रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार कर नर सेवा नारायण सेवा के सूत्र में आगे चलने को कहा।
प्रबोधन कार्यक्रम के बाद आश्रम में प्रसाद वितरण के साथ भंडारे का भी आयोजन हुआ जिसमे सैकड़ों लोगों शामिल रहे। कार्यक्रम में अद्वैत आश्रम के प्रबंधक स्वामी सुहृदयानंद जी महाराज, चिकित्सा प्रभारी स्वामी एकदेवानंद, प्रबुद्ध भारत के संपादक स्वामी गुणोतरानंद, स्वामी ज्ञानिसानंद, एडवोकेट अमरनाथ वर्मा, भास्कर मुरारी, सतीश खर्कवाल, शशांक पांडेय, डा प्रकाश चंद्र लखेड़ा,कुलदीप देव,कमल राय,कीर्ति बगौली, सुमित पुनेठा, गजेंद्र उपाध्याय,मोहित पुनेठा, समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।