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रिपोटर-महावीर सिंह राणा
स्थान-उत्तरकाशी
उत्तराखंड के उत्तरकाशी से जहां आजकल नवरात्रि के साथ-साथ पांडव नृत्य की भी धूम है
उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है, यहां पर अनेक प्रकार के देवी देवताएं विराजमान रहते है उत्तरकाशी जहां गंगा और यमुना का उद्गम स्थल है | वही यहां हर गांव गांव में देवी देवता विराजमान रहते हैं आज नवरात्रि का अष्टम दिन है, और अष्टम दिन के दिन उत्तरकाशी के भटवाड़ी बिलोक दूरस्थ गांव कामर में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है, पांडव नृत्य आदिकाल से चला आ रहा है, और यहां पर पांडवों के भी कहीं निशान मिलते हैं
वहीं अगर मैं बात करूंगा कामर गांव की तो यहाँ पर पांडव नृत्य का भव्य आयोजन किया गया है, जिसमें सभी गांव वाले धाना बुकना फल मक्खन घी दूध लेकर पांडव नृत्य में पहुंचते हैं और पांडवों का इसका भोग लगाते हैं | कहते हैं, पांडव जब पशुवा पर अवतरित होता है, जिसमें की पांच पांडव होते हैं, और उनमें एक द्रौपती होती है | ढोल नगाड़ों के साथ इस आयोजन को किया जाता है, और लोग अपनी समस्या को रखते हैं, साथ में जो देवता अवतरित होते हैं | वह लोगों के दुखों का निवारण भी करते हैं अगर किसी व्यक्ति पर नेगेटिव शक्तियां अवतरित हो रखी है, तो उसे देवता अपनी शक्ति से उस व्यक्ति से हटा देते हैं, वहीं अगर कोई व्यक्ति फल माखन देवता को देता है, तो देवता उसे आशीर्वाद देकर उसके सुख शांति की कामना करता है, कहते हैं कि जब हमारी नई फसल आती है |
जिस तरह अभी धान की फसल आई है और धान की फसल की कटाई हुई है, तो उसका जो पहले भोग होता है वह देवता को अर्पित किया जाता है इस तरह से जो हमारे पशु जंगलों से जब सुरक्षित दोस्त है, तो उनकी सुरक्षित कामना को लेकर इस तरह के आयोजन किए जाते हैं आज हमारी टीम भी भव्य और दिव्या आयोजन में समलित हुई |