
लोकेशन: काशीपुर, उधम सिंह नगर
रिपोर्टर: अज़हर मलिक
काशीपुर की सड़कों पर चलना अब किसी खतरे से कम नहीं। यहां हर गली, हर मोड़ पर मौत घात लगाए खड़ी है — और उसका रूप है आवारा सांड। जी हां, शहर की सड़कें अब ट्रैफिक से नहीं, सांडों की टक्कर से जाम हो रही हैं। यहां दोपहिया चलाना तो दूर, पैदल चलना भी किसी जंग से कम नहीं।


रोज़ाना सड़क पर सांडों की भिड़ंत होती है, जिनमें घायल होता है आम इंसान। कभी बुजुर्ग, कभी स्कूली बच्चे, कभी महिला तो कभी बाइक सवार — कोई भी सुरक्षित नहीं। लोग अब कहने लगे हैं कि ये सड़कें सांडों के बाप की हैं, और इंसान सिर्फ किरायेदार!


मौत के खेल का मैदान बना काशीपुर
इन सांडों की लड़ाइयां अब इतनी आम हो चुकी हैं कि लोग इन्हें “रोडसाइड रेसलिंग शो” कहने लगे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें टिकट नहीं लगता — लेकिन दांव पर होती है जान! रहागीरों के चेहरों पर खौफ है, और दोपहिया वाहन चालक हर मोड़ पर हॉर्न नहीं, दुआ लेकर निकलते हैं।


नगर निगम के वादे, सांडों के दांव
नगर निगम वर्षों से सिर्फ आश्वासन देता आ रहा है। रविंद्र बिष्ट हों या उनके पूर्ववर्ती आयुक्त, सभी ने सांडों को पकड़ने की बात कही — लेकिन हालात जस के तस हैं। आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, और नतीजा यह है कि काशीपुर की सड़कें अब ‘जंगल का कानून’ झेल रही हैं।

लोग बोले — “दंगल देखो… जान देकर!”
नाराज नागरिक अब तंज कसते हुए कहते हैं, “आओ काशीपुर की सड़कों पर, देखो बिना टिकट का लाइव दंगल। सांड लड़ेंगे, और मरेगा आम आदमी!”
हर हादसे के बाद नगर निगम ‘जांच’ और ‘कार्रवाई’ की बात कहता है, लेकिन हकीकत यही है कि शहर की जान खतरे में है और सिस्टम सिर्फ मूक दर्शक बना बैठा है।

कब जागेगा सिस्टम?
अब सवाल यह है — क्या कोई VIP या अधिकारी सांड की टक्कर में घायल होगा, तभी कोई हल निकलेगा?
काशीपुर की जनता थक चुकी है। उन्हें सुरक्षा चाहिए, न कि सिर्फ बयानबाज़ी। क्योंकि अब यह मसला सिर्फ ट्रैफिक का नहीं, जिंदगी और मौत का बन चुका है।

काशीपुर की जनता की मांग है — अब शब्द नहीं, कार्रवाई चाहिए!
नगर निगम को चेतना होगा, वरना सड़कें श्मशान में बदलने में देर नहीं लगेगी।

