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रिपोर्ट – दीपक नौटियाल
स्थान -उत्तरकाशी
उत्तराखंड के जंगलों मे प्रत्येक साल आगजनी से पर्यावरण एवं जंगलों को बडा नुकसान पहुंचता है सरकार इसको रोकने के लिए करोड़ों का वजट भी ख़र्च करती है पर जंगलों मे आग को रोकना मुश्किल होता है जनपद उत्तरकाशी जहां के जंगलों मे चीड के पेड अधिकतर पाये जाते है ओर चीड की पत्तियां जिसे हम पिरूल के नाम से जानते है
ओर वनो मे इस पिरूल से सबसे ज्यादा आग फैलती है उत्तरकाशी जनपद के एक बुजुर्ग राजेन्द्र गंगाडी ने इसका समाधान निकाला है गंगाडी द्वारा पिरूल को ईंधन के रूप मे विकसित कर इसे नया रूप दिया है इनके द्वारा गांव मे प्लांट लगाकर इससे कोयला बनाकर इसको हर रसोई मे भेजा जा रहा है
जिससे बहुत ही कम दामों मे गैस सिलेंडर का विकल्प भी माना जा सकता है महज 10से 15रूपये की लागत मे एक किलो पिरूल के कोयले से तीन टाईम का भोजन बन सकता है साथ इससे स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है अगर सरकार इसपर ध्यान दें तो यह विजली उत्पादन का साधन भी बन सकता है
ओर वनो मे लगने वाली आग से भी छुटकारा मिल सकता है इसके लिए गंगडी ने एक अगेठी जिसमें सोलर पैनल से चलने वाला पंखा फिट किया है इसमे पिरूल के कोईले को डाल कर धुवां रहित आग जलती है जिसमें की आशानी से भोजन तैयार किया जाता है गंगाडी के इस प्रयोग से कही स्वयं सेवी संस्थाएं भी अब स्थानीय महिलाओं को इसका प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर एवं पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आ रही है