भारत एवं तिब्बत के बीच प्रमुख व्यापारिक मार्ग गर्तांग गली जिसके निर्माण के लिए पेशावर से आये थे पठ्ठान कारीगर।

भारत एवं तिब्बत के बीच प्रमुख व्यापारिक मार्ग गर्तांग गली जिसके निर्माण के लिए पेशावर से आये थे पठ्ठान कारीगर।

रिपोर्ट -दीपक नौटियाल

स्थान -उत्तरकाशी

गर्तांग गली जो कि किसी जमाने में भारत एवं तिब्बत के बीच का व्यापारिक रूप में प्रमुख मार्ग रहा है जिसका निर्माण आज से 150साल पहले पेशावर से स्पेशल रूप में बुलाए गये पत्थर के कारीगर पठ्ठानो ने किया था इस रास्ते से भारत एवं तिब्बत के लोग आपस में व्यापार किया करते थे भागीरथी नदी की बगल से बहने वाली जाग गंगा नदी जो कि में मिलती है भैरव घाटी पुल से दो किलोमीटर का ट्रैक काफी कठिन है, पर रास्तों की खूबसूरती ऐसी है, जैसे जन्नत में जा रहे हों संकरे रास्ते, ऊंचे-ऊंचे पेड़ और शांत पहाड़ पर तेज हवाओं का शोर। फिरथोडी से चढ़ाई के बाद आता है एक चट्टान के ऊपर बना रास्ता जिसे गरतांग गली के नाम से जाना जाता है। आपको बता दूं कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में स्थित यह वही लकड़ी का पुल है, जो कभी तिब्बत ट्रैक का हिस्सा हुआ करता था। इसका निर्माण पेशावर से आए पठानों ने 150 साल पहले किया था, ताकि भारत-तिब्बत व्यापार को एक नया आयाम मिल सके, लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि इसे 1962 की भारत-चीन लड़ाई के बाद बंद करना पड़ा।


आजादी से पहले तिब्बत के साथ व्यापार के लिए नेलांग वैली होते हुए यह तिब्बत ट्रैक बनाया गया था और गरतांग गली का यह ट्रैक भैरवघाटी के नजदीक खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर तैयार किया गया था था। इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से उत्तरकाशी के बाड़ाहाट पहुंचाए जाते थे।
इस पुल के बंद हो जाने से लोगों की आवाजाही बंद हो गई थी। इस पुल से नेलांग घाटी का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है। कई यात्रियों का सपना रहता है कि वे इस जगह की खूबसूरती को देखें। नेलांग घाटी सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है, जिसकी वजह से सदियों से भारत-तिब्बत व्यापार के गवाह रहे इस पुल को 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। यहां स्थित गांव के लोगों को हरसिल के नजदीक बगोरी गांव में बसा दिया गया था। यहां के ग्रामीणों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक बार पूजा अर्चना के लिए इजाजत दी जाती रही है, पर पर्यटकों के लिए यह जगह पूरी तरह से बंद कर दी गई थी। 2015 में देश भर के पर्यटकों को नेलांग घाटी तक जाने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से इजाजत दी गई थी, जिसका सकारात्मक परिणाम रहा। पर्यटन को इस क्षेत्र में काफी बढ़ावा मिला और गंगोत्री धाम आने वाले यात्रियों को एक और खूबसूरत गंतव्य मिल गया


इस जगह के ऐतिहासिक महत्त्व को देखते हुए गरतांग गली की सीढिय़ों का पुनर्निर्माण कार्य भी शुरू किया गया, जिसे इसी साल जुलाई माह में पूरा किया गया है। सरकार का मानना है कि इससे पर्यटन को गति मिलेगी। गरतांग गली की लगभग 150 मीटर लंबी सीढिय़ां अब अपने एक नए रंग में नजर आने लगी हैं और लोग इस जगह की खूबसूरती का दीदार करने लगे हैं। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी ये सीढिय़ां इंजीनियरिंग का नायाब नमूना हैं।


गरतांग गली की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो यह भैरव घाटी से नेलांग को जोडऩे वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा की घाटी में मौजूद है। नेलांग घाटी जिसे उत्तराखंड का लद्दाख भी कहा जाता है, चीन सीमा से लगी है। इसी सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं। इस जगह पर यदि आप जाना चाहते हैं, तो पहले उत्तरकाशी पहुंचना होगा और फिर हरसिल होते हुए गर्तांग गली पहुंचे