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रिपोर्टर – दीपक नौटियाल
स्थान – उत्तरकाशी
मंगशीर की बग्वाल जिसे टिहरी उत्तरकाशी एवं जौनसार के क्षेत्र मे बडे ही धूम-धाम से मनाया जाता है गढ़वाल मे इसे मंगशीर की बग्वाल एवं जौनसार मे इसे बूढी दीपावली के रूप मे मनाई जाती है भगवान राम जब अयोध्या लोटे थे तो उनके स्वागत मे दीपावली जोकि अक्टूबर नवम्बर मे मनाई जाती है ठीक उसी के उलट दीपावली के एक महीने बाद उसी दिन मंगशीर की बग्वाल मनाई जाती है
इसके पीछे कारण यह है कि 1635 मे जब टिहरी रियासत के अन्तर्गत उत्तरकाशी के तिब्बत बोर्डर पर तिब्बतियों ने यहां की सीमा मे घुसकर यहां के लोगों पर अत्याचार करने सुरू कर दिए थे यहां की महिलाओं बच्चों को बंधक बनाकर तिब्बत भेजा जाने लगा दीपावली के दिन टिहरी के राजा ने यहापर माधोसिंह भण्डारी के नेतृत्व मे यहां पर सेना भेजी एक महीने तक युद्ध चला ओर माधो सिंह भण्डारी ने तिब्बत पर विजय प्राप्त की इसी बीच टिहरी रियासत के लोग दीपावली नही मना पाये थे ओर राजा अपने सैनिकों का सम्मान भी करना चाहता था राजा ने ऐलान कर दिया कि इन सैनिकों के सम्मान मे हर साल दीपावली जिसे स्थानीय भाषा मे बग्वाल कहा जाता है मनाई जाएगी
तब से अब तक गढ़वाल जौनसार मे यहा बग्वाल धूमधाम के साथ मनाई जाती है उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय मे यहा बग्वाल बडे ही हर्षोल्लास के साथ आयोजित की जाती है जिसमे गढ़वाल की संस्कृति को देखने के लिए लोग यहां पहुंचते है जनपद मुख्यालय मे तांदी रांसो बीर भडो की झांकियां निकाली जाती है ओर अन्त मे भैलो नृत्य किया जाता है भैलो जोकि चीड के पेड से निकलने बाली लड़की जिसमे लीसा होता है उससे तैयार किया जाता है ओर इसके साथ स्थानीय महिलाएं बच्चे बुजुर्ग एवं नौजवान ढोल की थाप पर नृत्य करते है.