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रिपोटर-दीपक नौटियाल
स्थान-उत्तरकाशी
जनपद उत्तरकाशी मुख्यालय से दो किलोमीटर की खडी चढ़ाई पर करने पर एरावत पर्वत जिसे वर्तमान मे कुटटे भी कहा जाता है |
इसी पर्वत के ऊपर स्थित है, मां भगवती राजराजेश्वरी कुटेटी देवी का मन्दिर जो माता के भक्तों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है |कहा जाता है, कि पौराणिक काल मे जब राजस्थान के राजा गंगोत्री धाम की यात्रा पर आये थे तोमां गंगा ने उनकी परीक्षा लेनी चाही ओर उनकी मुद्राओं का थैला कहीं गिर गया था, ओर उनके सैनिकों के सामने खाने की समस्या उत्पन्न हो गयी थी परेशान होकर राजा ने मां गंगा एवं काशी विश्वनाथ की पूजा की एवं मुद्रा मिलने पर अपनी पुत्री का विवाह यहीं करने का संकल्प लिया आखिर मे राजा की मुद्रा मिल गयी, ओर राजा गंगोत्री के दर्शन करके चला गया |
कालान्तर मे जब वह अपना वादा भूल गया फिर मां गंगा ने सपने मे जाकर उसको उसका वादा याद दिलाया, फिर वह योग्य लडके की तलाश मे यहां आया तो यहां के राजा नदे अपने पुत्र के साथ विवाह करने पर मना कर दिया, थक-हार कर राजा ने एक किसान के बेटे से अपनी कन्या का विवाह कर दिया विवाह के पश्चात किसान के बेटे के सपने मे माता आई ओर खेत मे हल चलाने के लिए कहा जब किसान ने खेत मे हल चलाया, तो खेत से यह मूर्तियां प्राप्त हुई, जिनपर आज भी हल का निशान साफ देखाई देता है यानी कि कोटा से आने पर इस देवी का नाम कुटेटी देवी पडा इस मन्दिर मे पूजा अर्चना करने से निशांतान दम्पति को पुत्र प्राप्ति होती है |
इसी लिए बारों महिने यहां भीड लगी रहती है, साथ ही इस क्षेत्र की कन्या को विवाह के पश्चात यहा अपने पति के साथ दर्शनों के लिए आना जरूरी होता है | इसके पीछे मान्यता है, कि अगर वह यहां पूजा नहीं देगें तो वंशवृद्धि नही होती है |