8-10 घंटे की करते है डेस्क जॉब? तो हो जाए सावधान! अल्जाइमर-डिमेंशिया का हो सकता है खतरा

8-10 घंटे की करते है डेस्क जॉब? तो हो जाए सावधान! अल्जाइमर-डिमेंशिया का हो सकता है खतरा

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रिपोटर –ब्यूरो रिपोट

कई स्टडीज में 9 टू 5 की डेस्क जॉब को स्वास्थ्य सम्बन्धी बिमारियों को बढ़ावा देने वाला बताया गया है। एक ही स्थान पर लगातार बैठकर काम करने से आपकी हेल्थ पर फर्क पड़ सकता है।लॉन्ग सिटिंग जॉब्स से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से कष्ट हो सकता है। अगर आप की भी 8-10 घंटे की सिटींग जॉब है तो आपको अपने लाइफस्टाइल पर गौर करने की आवश्यकता है।

अल्जाइमर जैसी बीमारी का खतरा

रिसर्चर के मुताबिक लॉन्ग सिटिंग जॉब्स वाले व्यक्ति के अंदर समय के साथ न्यूरोलॉजिलकल विकारों के होने का खतरा बना रहता है। इससे व्यक्ति को अल्जाइमर जैसी बीमारी होने का भी खतरा बना रहता है।डिमेंशिया रोग के मुख्य कारणों में से एक अल्जाइमर रोग होता है। वैसे तो ज्यादातर इस बीमारी का खतरा 60 की उम्र से अधिक के लोगों में देखा गया है। लेकिन स्टडी में बताया गया है की अब इसका खतरा जॉब करने वाले लोगों में बढ़ रहा है। जिसकी वजह से 8-10 घंटे जॉब करने वाले लोगों को अलर्ट रहने की जरुरत है।

डिमेंशिया का खतरा

दशकों पहले डिमेंशिया या अल्जाइमर जैसे गंभीर रोग का खतरा वयस्कों में नहीं माना जाता था। लेकिन समय के साथ कम उम्र के लोगों में भी इसका खतरा बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के मुताबिक 55 मिलियन लोग वर्त्तमान मे अल्जाइमर-डिमेंशिया की चपेट में है।ख़राब लाइफस्टाइल के चलते इन गंभीर बिमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। इसी से सम्बंधित जामा जर्नल में एक स्टडी प्रकाशित हुई थी। जिसमें विशेषज्ञों ने बताया की यदि एक व्यक्ति हर रोज 10 घंटे से ज्यादा की सिटिंग जॉब करता है तो ये डिमेंशिया के विकसित होने का कारण बन सकता है।

गतिहीन व्यवहार सेहत के लिए नुकसानदायक

रिपोर्ट में बताया गया है की अमेरिका के आधे से ज्यादा लोगों का साढ़े नौ घंटे से ज्यादा का समय बैठे हुए व्यतीत होता है। इस गतिहीन व्यवहार में ऑफिस में बैठने के अलावा बैठकर टेलीविजन देखना, कंप्यूटर और गाड़ी आदि चलाना शामिल है।

क्या कहता है अध्ययन ?

अध्ययन में बताया गया है की कैसे इंसान का गतिहीन व्यवहार मस्तिष्क से जुडी समस्या का कारणबन सकता है। इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने यूके बायोबैंक से डाटा लिया।जिसके लिए स्टडी से जुड़े प्रतिभागियों को अपनी कलाई पर एक हफ्ते के लिए एक्सेलेरोमीटर पहनने के लिए बोलै गया था। इस डाटा को से शोधकर्ताओं ने आकलन किया की प्रतिभागि कितने गतिहीन थे। एकत्र किये गए डाटा में पता चला की जो दिन में करीब 10 घंटे गतिहीन रहते है। उन लोगों में डिमेंशिया का जोखिम ज्यादा है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ का क्या है कहना?

अध्ययनकर्ता डॉ. शारा कोहेन ने डिमेंशिया के खतरें पर बात करते हुए कहा की पहले से ही कई सारी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण सेंडेंटरी लाइफस्टाइल को माना गया है।जिसमें उच्च रक्तचाप, मोटापा और डायबिटीज जैसे रोग शामिल है। अब डिमेंशिया का भी इस लिस्ट में नाम आ गया है। वैस्कुलर हेल्थ के लिए भी शारीरिक निष्क्रियता नुक्सानदायक है। ये मस्तिष्क में खून के प्रवाह को कम करता है। साथ ही सेरेब्रोवास्कुलर रोग का भी खतरा बढ़ाता है।